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अकेलेपन की सच्ची साथी, होती भाई किताबें,
ज्ञान का सागर घुमड़-घुमड़कर ढोती भाई किताबें।
सारी मुश्किल-सवाल सारे, पलभर में निपटाएँ,
हरपल-हरदम साथ निभाकर, सचमुच मन को भाएँ।
कहती मुझमें ही खो जाओ, करना नहीं बहाना,
अजब-अनोखी दुनिया का मैं, दूँगी नया खजाना।
जो कुछ भी तुम जान न पाते, सबका भेद बताऊँ,
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