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अकेलेपन की सच्ची साथी, होती भाई किताबें,

ज्ञान का सागर घुमड़-घुमड़कर ढोती भाई किताबें।

 

सारी मुश्किल-सवाल सारे, पलभर में निपटाएँ,

हरपल-हरदम साथ निभाकर, सचमुच मन को भाएँ।

 

कहती मुझमें ही खो जाओ, करना नहीं बहाना,

अजब-अनोखी दुनिया का मैं, दूँगी नया खजाना।

 

जो कुछ भी तुम जान न पाते, सबका भेद बताऊँ,

बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सबका ज्ञान बढ़ाऊँ।

 

पर्वत-नदी-ध्रुव या मरुस्थल, छुपता न कुछ मुझसे,

ताजमहल-मीनार पीसा की, बचता न कुछ मुझसे।

 

सीखो मुझसे हिलना-मिलना, मुसकाना खिल जाना,

कोई कहे, किताबी कीड़ा, पर तुम न घबराना।

 

उनके लिए अंगूर हैं खट्टे, इसीलिए हैं कहते,

पढ़नेवाले बच्चे जग में सबसे आगे रहते।

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