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अभी उजाला दूर है शायद...

Nishant JainNishant Jain June 16, 2020
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दीवाली-दर-दीवाली ,

दीप जले, रंगोली दमके,

फुलझड़ियों और कंदीलों से,

गली-गली और आँगन चमके।


लेकिन कुछ आँखें हैं सूनी,

और अधूरे हैं कुछ सपने,

कुछ नन्हे-मुन्ने चेहरे भी,

ताक रहे गलियारे अपने।


खाली-खाली से कुछ घर हैं,

कुछ चेहरों से नूर है गायब,

अलसाई सी आँखें तकतीं,

अभी उजाला दूर है शायद।


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