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बात शब्दों की नहीं सम्मान की थी,
उस आँगन में हुए अपमान की थी.
अम्बक में उन्नत पीड़ा का आभास कर पाता कोई,
बिलखती ह्रदय की सुन पाता कोई,
माता जानकी के स्वाभिमान को ना तपना होता अग्नि में,
दक्ष पुत्री भी
उस आँगन में हुए अपमान की थी.
अम्बक में उन्नत पीड़ा का आभास कर पाता कोई,
बिलखती ह्रदय की सुन पाता कोई,
माता जानकी के स्वाभिमान को ना तपना होता अग्नि में,
दक्ष पुत्री भी
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