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कभी तो हम सिरमौर रहे थे
कभी संस्कृति मे चिन्तन था
कहां खो गए है हम
किस अंधकार मे है हम
ये पाश्चात् की संस्कृत
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कभी तो हम सिरमौर रहे थे
कभी संस्कृति मे चिन्तन था
कहां खो गए है हम
किस अंधकार मे है हम
ये पाश्चात् की संस्कृत
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