शाम ढल गई's image
Share0 Bookmarks 39 Reads0 Likes
शाम ढल गई

शाम ढल गई 
सो क्यो नही जाते हो,
क्यो जलाते हो अपना दामन,
भीगे अश्कों की लड़ियों में,

शाम ढल गई 
सो क्यो नही जाते हो...

भूल जाते अगर हम किस्से
तो मोहब्बत के फसाने 
अधूूरे ही लिखते
वो जो नायाब तोहफ़ा 
खुदा ने बक्शा,
कद्र कर थोडी
उसकी रहमत पर भी,

अपना शामियाना दांव पर 
क्यो लगाते हो,
शाम ढल गई 
सो क्यो नही जाते हो.....

मेरी मंज़िल तो ग़र 
आम राहगीर सी होती,
तो तुम्हें साथ ले चलते
फ़लक तक,
बैठे होते रात भर पहलू मे,
ईश्किया सितारों से भरते 
मोहब्बत की गुल्लक,

शाम ढल गई 
सो क्यो नही जाते हो......

बेहिसाब ईश्क का कब तक
मांगोगे आज़माईशी सिक्का,
रहते हरदम तेेेरा अक्स बनकर,
दरिया-ए-दिल को 
तुमने क्यो नही संभाला, 

बेहिसाब शिकायतेें 
मुझसे ही फरमाते हो
शाम ढल गई 
सो क्यो नही जाते हो.....

नेेेहा माथुर 

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts