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था थक कर बूढ़ा बाज़ गिरा
(लेखक-नीरज शर्मा)
था थक कर बूढ़ा बाज़ गिरा,
जैसे दुनिया का सरताज गिरा,
अमरीका,नाटो खुश थे बहुत,
जब सोवियत संघ का ताज गिरा।
कोई ना उसके पास खड़ा था,
हर कोई भाग जा दूर रहा था,
अमरीका पाबंदिया लगाता जाए,
पर बाज़ उड़ने को मचल रहा था।
निज आत्मबल से खड़ा हुआ,
संगर का निश्चय है किया हुआ,
संगर की बोल रहा जय जय,
हर अरि उसका है डरा हुआ।
ललकार कर दुनिया को बोला,
आ जाए जिसमेें दम है बोला,
परमाणु बम तक मैं जाऊंगा,
सुन बोल सकल भूमंडल डोला।
नर मुण्डों की कंठ माला पहने,
जीवन के भूला आज वो मायने,
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