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करण-अर्जुन युद्ध
(नीरज शर्मा)
काली अंधेरी रात सा चढ़ता लगे सवेरा,काल संग काली रात से ही निकलेगा तेरा बसेरा।
वो सामने खड़ा जो योद्धा वो कोई साधारण नहीं, महाकाल सा विचर रहा प्राणों का उसे मोह नही, महापराक्रमी कर्ण से ही जीतना तुम्हें युद्ध है, यही तो अभिमान दुर्योधन का अति शुद्ध है।
हे माधव मैं हूं जानता इसके पराक्रम और शौर्य को, आने दो मेरे सामने आज इस सूर्य पुत्र को, गाण्डीव की टंकार इसको वाणी काल की लगेगी,आज रण में भेदूंगा मैं इसके अभिमान को।
सुनके वाक्य पार्थ के मंद मंद प्रभु मुस्कुरा रहे,देख रहे थे सामने क्षण मुश्किल के आ रहे,वो तो जानते अच्छे से कर्ण नाम के इस ज्वार को,तिनके भांति ले जाएगा बहा अर्जुन को साथ वो,
एक दूसरे के सामने वीर वो दोनो आ खड़े थे,आंखो से दोनो अंगारे से बरसा रहे थे,टंकार तो गाण्डीव की तेज गर्जना कर रही थी, आवाज सिंहनाद की विजय धनुष से आ रही थी।
बाणो की गंगा रक्तपात करती आज बह रही थी,इस महासमर में मृत्यु मृत्युंजय की ओर आ रही थी,हर कोई खड़ा चकित सा देखता यह दृश्य था,धारण किए थे रूप दोनो महादेव प्रभु शम्भु सा।
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