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गौरी का काल सम्राट पृथ्वीराज चौहान
भाग-3/4, गौरी-जयचंद षड्यंत्र
(मूल लेखक-नीरज शर्मा)
ले आऐ सम्राट सम्राज्ञी अपने महल और आंंगन में,हर कोई खुशी से झूम रहा यह क्षण आया देख अपने यूं जीवन में,
हर ओर प्रसन्नता बिखरी हुई दिखे हर कोई हर्ष और उल्लास में,सारा नगर दुल्हन सा सजा है उन सब के अभिनन्दन में,
उधर जयचन्द की नींद थी उड़ी हुई डूबा दुख के अथाह सागर में,अरि को जमाई कैसे वो माने जागे इसी उधेड़ बुन में,
समय चाल है एक सी चलता इस पूरे भूमंडल में,किसी को याद रहे वो क्षण खुशीओं में,कोई चाहे भूलना उसे दुख के उमड़ते स्मरण में,
समय बीत रहा पृथ्वी का प्रेयसी संग प्रेम आनन्द में और समय जयचंद बीता रहा प्रतिशोध के जलते अग्नि कुण्ड में।
जयचंद ने ममता मिटा दि बेटी की अपने कुण्ठित से मन में,प्रतिकार का निश्चय कर लिया था चाहे मिले वो किसी भी कीमत में,
अग्न एक सी स्थान अलग जल रहा गौरी भी गजनी की अंधी गलियों में,मांग रहा अल्लाह से मौका फिर घुसने का भारत में।
मौका दिखा गौरी को जयचन्द संदेशे में,संदेश नही अपितु निमंत्रण था लूट का वो भारत में,जयचंद साथ तुम्हारा देगा इस पूरे प्रकरण में,
हुई वार्ता बनी योजना,आऐ सब अपनी निश्चित भूमिका में,योजना तहत पृथ्वीराज को धमकी भेज दी गौरी ने लिख पत्र में।
ले संदेशा राजदूत पहुंचा गजनी से दिल्ली दरबार में,हर कोई चकित सा सोच रहा क्या लिखा होगा इस राज अभिलेख में,
पढ़ संदेशा उसने सुनाया दिल्ली के भरे सभागार में,गौरी बोल रहा पत्र में, चौहानों सहित सेना करे समर्पण आगे आते कुछ दिन मे।
रख दो शमशीर हमारे कदमों में, वरना कत्लेआम होगा भारत के महकते गुलशन में,अभी भी वक्त है आ जाओ शरण हमारी में।
अरि की चुनौती सुन तमतमा कस तलवार मुट्ठी में, सम्राट दहाड़े कटा पड़ा तु धरा पर होता जो बंधा ना होता मैं मर्यादा में,
बोले लीपिक लिखो संदेशा शत्रु के संंम्बोधन में,वो लिख रहा जो बोले सम्राट आक्रोश में,दूत थरथर कांप रहा सुन शब्द जो पड रहे कानों में,
सुनके खून उतरा गौरी की आंखों में,दूत बोले चौहान की बोली जो लिखी हुई थी पत्र में,ओ कायर सुन गौरी क्षमा मांग के तु भागा उस रण में,
ओ भगौड़े जान की मांगी थी माफी तुने हाथ जोड कर भिक्षा में,भूल गया क्या कैसे बैठा था रोता बिलखता मेरे चरणो में,
बक्शा था सोच के सुधार होगा तेरे में,भूल गया तु वो अपनी कसमें,जब चाहे तु आना आजा चौहान खड़े मिलेंगे संमरागन में,
हुई शुरू तैयारी दोनो दलों में,गौरी ने जोड़ी दूसरी सेनाएं अपने लूटेरे लश्कर में,कूच करी ले डेढ़ लाख बलशाली पहुंचने भारतीय सीमा में,
दिल्ली से भी दूत चले लेने सहयोग राजपूताना और बुंदेलखण्ड में,कोई राज्य साथ ना आया सबका सिर हिलता था ना में,
सभी राजा थे नाराज,माना उन्होंने घोर अपमान हुआ था जो संयोगता स्वयंवर में,वे समय बताते प्रतिशोध का आया है अब जीवन में,
कन्नौजराज जयचंद मान गए देंगे सैनिक सहायता उस युद्ध में,बोले कन्नौज देश का हर एक सैनिक लडेगा सम्राट चौहान के हक में,
संदेशा पा कर सम्राट हर्षित थे सहायता आश्वासन के मद में,एक समान सेनाएं मिली तो तीन लाख हो गए सैनिक दिल्ली सेना दल में,
कोई समझा ना क्या षड्यंत्र करता शकुनी उस महाभारत की चौसर में,जयचंद चल दिया गहरी चाल परिणाम छुपा भविष्य के गर्भ में।
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