
now I have been a well known personality lying here in my grave yard telling you my story
"कहाँ से शुरू करू?"
"कहाँ पैदा हुआ?" मालूम नहीं
"माँ बाप कौन?" याद नहीं
आज यह पर लेटा हूँ तो ये सारे मेरे साथ में हैं….. पर इन में से कईयों को में जानता भी नहीं।
ये जो आँसू बहा रहे हैं बाहर, ये लोग ये शौहरत ये नाम
मुझे कुछ नहीं मिला विरासत में
मेरी विरासत, मेरी विरासत जैसे कि एक खाली किताब थी
ना जाने कब मैंने इनके पन्नो को भरना चालू किया और ना जाने कब अचानक से मैं इस किताबों के आखरी पन्ने पर आ गया... और अब ना जाने ये सब लोग कब मेरी किताब मेरी कहानी मेरी जिंदिगानी को भूल भी जाएँगे
कहते हैं जब आखरी वक़्त आता है तो इंसान को अपना पूरा जीवन एक कहानी की तरह नज़र आने लगता है लेकिन देखो अभी कोई खास कहानी भी याद नहीं आ रही, इन आखरी लम्हों में; अभी बस याद आ रहे हैं तो मेरे पीछे छूटे माँ बाप!
"मेरा नाम?" मैं अपना नाम नहीं बताऊँगा क्योंकि लोग अक्सर नाम में ही मज़हब ढूंढ लेते हैं
"मज़हब" हाँ! सही सुना आपने मुझ जैसी बड़ी हस्ती भी मज़हब का शिकार है।
"कहाँ से हूँ मैं?"
मेरा जन्म वहाँ हुआ जहाँ शिकारा होती हैं, जन्नत कहते है उस जगह को... हाँ जनाब मैं जन्नत में पैदा हुआ था पर ना जाने कब उस जन्नत में शैतान घुस आए ।
मुझे याद है वो शाम जब मैं छत पर पतंग उड़ा रहा था तभी बंदूकों की आवाज़े आने लगी.. चारों तरफ़ एक ही आवाज़ थी एक ही शोर था "जन्नत खाली कर दो" !
इस सफ़र के बाद ना जाने में कहाँ जाऊँगा जन्नत में या जहनुम में... मगर अगर जन्नत गया तो एक आखिरी बार अपने उसी घर में जाऊँगा जहाँ से भागते वक़्त में उनसे भी नहीं मिल पाया था जिन्होंने मुझे जन्म दिया।
अब साँस छूट सी रही है... लगता है माँ ने आवाज़ लगवाई है अपनी गोद में सुलाने को या शायद बाबा बुला रहे है आंगने में साथ खेलने को....
- Neeraj Jha
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