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राह के पत्थर से थे बेकार तुम,
फ़र्ज़ जब समझे बने मुख़्तार तुम।
हो गए लाचार बूढ़े बाप जब,
छोड़ना उनको न यूँ बीमार तुम।
माँ तुम्हारी रोज़ सपने बुन रही,
ख़्वाहिशों के बन गए अम्बार तुम।
नफ़रतों की आग में क्यूँ घिर गए?
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