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दिल तेरे दायरे से निकलता नहीं है क्यों
आलम इसे गमों का अब खलता नहीं है क्यों ।।
क्यों झील सा ये ठहर गया है यहाँ ! ख़ुदा
रस्तों पे ज़िंदगी के ये चलता नहीं है क्यों ।।
तन्हाई रास आने लगी क्यों इसे यहाँ
अब दे
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