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बस वो दिलबर ही न समझे इश्क़ था बेहद मेरा
पूजते है लोग उल्फत में यहां मरकद मेरा
जुस्तजू ए हासिल ए मंजिल न पूछ इस दौर में
आदमी हूं और दानव होना है मकसद मेरा
तल समुंदर का बुलंदी आसमा की छू सकूं
ऐ ख़ुदा कब इतना ऊँचा हो सका है कद मेरा
शहर को घेरे खड़ी है ऊँची ऊँची बिल्डिंगे
अब नहीं दिखता कहीं भी गाँव का बरगद मेरा
भरके आँखो में नमी ये लिख रही है ’सैयरा’
सिर्फ अकेलापन रहा साथी यहां हर पल मेरा
नीलम बंसल
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