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बस वो दिलबर ही न समझे इश्क़ था बेहद मेरा
पूजते है लोग उल्फत में यहां मरकद मेरा
जुस्तजू ए हासिल ए मंजिल न पूछ इस दौर में
आदमी हूं और दानव होना है मकसद मेरा
तल समुंदर का बुलंदी आसमा की छू सकूं
ऐ ख़ुदा कब इतना
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