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ग़ज़ल
जो खो दिया है तू ने मुकर्रर नहीं है ये
दुख जितना समझा उतना तो कमतर नहीं है ये ।।
मुम्किन नहीं दोबारा इसे पाना अब यहां
यारों!मशीनों से बना गौहर नहीं है ये ।।
हर पल ये प्यार अपना बदल लेता है यहां
नर एक नारी वाला वो शंकर नहीं है ये ।।
ये तो बिखरने लगता है हल्की सी चोट से
जिसको तराशा जाए वो पत्थर नहीं है ये ।।
मेरी ग़ज़ल है दर्द-ओ-अलम का बयान यार
दिल चीर कर दिखाएं वो नश्तर नहीं है ये ।।
नीलम बंसल
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