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एक कड़वा सच है जीवन का,
जो शायद तुमको रास न आए,
मां जगदम्बा की पूजा करने में,
सारा दिन समर्पित करते हो,
और अपने ही घर की लक्ष्मी को,
वो इज़्ज़त देने से डरते हो,
तुमको नारी का रूप सिर्फ,
देवी में प्यारा लगता है,
एक आम नारी का जीवन सोचो,
कितनी कठिनाइयों से गुज़रता है,
पहले बाबा की छाव में,
रहना ही उसका जीवन था,
फिर पत्नी बन आई जब वो,
वो छाव रहा ना बचपन का,
तिनका जैसा भी मेरी बच्ची को,
कोई आंच नहीं दे सकता है,
ऐसा कहते थे बाबुल मेरे,
वो आंगन
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