मैं स्त्री's image
Share0 Bookmarks 48 Reads2 Likes

एक कड़वा सच है जीवन का,

जो शायद तुमको रास न आए,


मां जगदम्बा की पूजा करने में,

सारा दिन समर्पित करते हो,

और अपने ही घर की लक्ष्मी को,

वो इज़्ज़त देने से डरते हो,


तुमको नारी का रूप सिर्फ,

देवी में प्यारा लगता है,

एक आम नारी का जीवन सोचो,

कितनी कठिनाइयों से गुज़रता है,


पहले बाबा की छाव में,

रहना ही उसका जीवन था,

फिर पत्नी बन आई जब वो,

वो छाव रहा ना बचपन का,


तिनका जैसा भी मेरी बच्ची को,

कोई आंच नहीं दे सकता है,

ऐसा कहते थे बाबुल मेरे,

वो आंगन मुझसे छूटा है,


जिस आंगन में मेरे पैर गए,

वहां नाम की लक्ष्मी कहलाती हूं,

अपने जीवन को भूल कर,

हर पल तुम्हारा कर जाती हूं,


तुम्हारे पथ को अपना मान,

तुम्हारे पीछे चलती हूं,

अपने सपनो का गला घोट,

बस घुट - घुट कर के जीती है,


जीवन की इस धारा में,

स्त्री का क्या सम्मान है,

जिस कोख से तुम जन्में हो,

उस कोख न सहा बस अपमान है,


कहो तो ज़रा मेरे कितने रूप है,

हर रूप में एक एक त्याग छिपा है,

खुशियों की चाभी कहते है मुझे,

पर क्या वो मुझे सम्मान मिला है...?

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts