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ये देश अपना मज़हब हुआ करता था,
फिर क्यूं मेरा मज़हब - मेरा मज़हब,
का सार हम इंसानों ने छेड़ा है,
रहने दिया होता हमारे देश को एक ही रंग में,
क्यूं रंगों में ख़ुद को तोड़ा है,
क्यूं ना रह जाए ये चोला बसंती,
और रहने दे हरियाली खेतों को,
सफ़ेद हम अपना मन कर लें,
और फक्र से कह सके,
की ये देश ही धर्म और मज़हब है हमारा....
फिर क्यूं मेरा मज़हब - मेरा मज़हब,
का सार हम इंसानों ने छेड़ा है,
रहने दिया होता हमारे देश को एक ही रंग में,
क्यूं रंगों में ख़ुद को तोड़ा है,
क्यूं ना रह जाए ये चोला बसंती,
और रहने दे हरियाली खेतों को,
सफ़ेद हम अपना मन कर लें,
और फक्र से कह सके,
की ये देश ही धर्म और मज़हब है हमारा....
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