Share0 Bookmarks 45429 Reads2 Likes
ज़ख़्मों पे ज़ख़्म खाए ज़माने गुज़र गए
पत्थर भी घर मे आए ज़माने गुज़र गए
वो दोस्ती का हो या कोई दुश्मनी का हो
रिश्ता कोई निभाए ज़माने गुज़र गए
कैसी है कमनसीबी के ठोकर भी दोस्तों
उसकी गली में खाए ज़माने गुज़र गए
कुछ तो कोई बताए के चौखट पे देर शब
उसको दिया जलाए ज़माने गुज़र गए
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments