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वो धूमिल सी राहें वो काली रातें
ख़्वाबों को निगलते चमकते तारे
वो ज़िंदा तो है मरे हुए यहां सारे
ज़िंदगानी की हक़ीक़तों के मारे
सांस लेते कुछ ख़्वाहिशों के भूखे
दम तोड़ती चंद ज़रूरतों के धोखे
क्या यही रस्म़ है यहां जीने की दुनिया...
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...
#नवीन
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