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*शक्ति आराधना*
आज मैं देख रहा यह कैसा दृश्य समर में।
मैं धर्म वह अधर्म फिर भी शक्ति है रावण के पक्ष में।।1
यह कैसा खेल रच रही है समर भवानी।
अधर्म का साथ और धर्म का कर रही है वह पानी।।2
हे जामवंत यह कैसा मोड़ है समर का।
क्या हारेगा धर्म और पक्ष जीतेगा अधर्म का।।3
हे रघुवर, रावण ने यह तपस्या कर पाया है।
तभी तो युद्ध में शक्ति साथ आयी हैं।।4
हे रामअधर्म कभी ना सफल होता।
धर्म अधर्म मैं हमेशा धर्म विजित होता।।5
अब समर त्यागो ध्यान करो शक्ति का।
फिर देखो फल अपनी भक्ति का।।6
राम हे शक्ति की पूजा में लीन जैसे मानो कोई सन्यासी।
मां शक्ति भी त्याग कर अधर्म का पक्ष धर्म के पक्ष में आने को प्यासी।।7
यह क्षण है पूजा के समाप्त होने का।
अंतिम कमल को शक्ति के चरणों में अर्पित
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