
अपनी गति से चलता जा,
तूं अपनी गति से चलता जा।
गिरगिट जैसी दुनिया में,
बस थोड़ा रंग बदलता जा।
अपनी गति से चलता जा,
तूं अपनी गति से चलता जा।
राह के थोड़े अवरोधों से,
थोड़ा थोड़ा संभलता जा ।
दुनिया को प्रदीप्त करने को,
बस थोड़ा सा जलता जा ।
अपनी गति से चलता जा,
तूं अपनी गति से चलता जा।
अपने लक्ष्य के खातिर,
तूं बस थोड़ा सा मचलता जा।
त्याग तपस्या सिर माथे रख,
अल्हड़ पन को छलता जा।
अपनी गति से चलता जा,
तूं अपनी गति से चलता जा।
तम के बादल की श्रष्टि में,
एक किरण बन पलता जा।
रे मानुष! इस अन्धकार में,
सूर्य के जैसे ढलता जा।
अपनी गति से चलता जा,
तूं अपनी गति से चलता जा।
पुष्प सलोना बनकर के तूं,
शूलों के संग खिलता जा।
कभी वीर के ताबूतों से,
मन्दिर से कभी मिलता जा।
अपनी गति से चलता जा
तूं अपनी गति से चलता जा।
गिरगिट जैसी दुनिया में
बस थोड़ा रंग बदलता जा ।
अपनी गति से चलता जा,
तूं अपनी गति से चलता जा।
ह्रदय हिलोरें थाम थाम कर,
मन मसोस कर मलता जा।
मोम सा बनकर स शरीर,
परमार्थ हेतु पिघलता जा ।
अपनी गति से चलता जा,
तूं अपनी गति से चलता जा।
गिरगिट जैसी दुनिया में ,
बस थोड़ा रंग बदलता जा।
ईर्ष्या, द्वेष, छल पाखण्ड की,
मदिरा को तूं निगलता जा।
प्रेम, सौहार्द्र, दया करुणा संग,
वक्त की तरह फिसलता जा।
अपनी गति से चलता जा,
तूं अपनी गति से चलता जा।
गिरगिट जैसी दुनिया में,
बस थोड़ा रंग बदलता।
कवि: नवल दीक्षित
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