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हासिल होता नहीं है अहसास-ए-दर्द-ए-मन हर किसीको
मयस्सर नहीं है बशर यहाँ लुत्फ़ -ए -सुख़न हर किसीको
बेशक लाख परवाज़ भरेहै परिंदा आस्मां की बुलंदियों में
बहिस्त में मग़र नसीब नहीं मुकद्दस नशेमन हर किसीको
डॉ.एन.आर. कस्वाँ#बशर
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