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तस्वीर बनाना चहता हूँ अपनी रंग कोई गहरा नहीं मिलता
सूरतें मिलती हैं बहुत ख़ुद के लिए कोई चेहरा नहीं मिलता
किसे मालूम कौन उड़ा लेगया चमन से रंग ओ बहार तमाम
उजड़े हुए दयार पर कहीं किसी का कोई पहरा नहीं मिलता
मुसलसल जारी है गैर -मुकम्मल सफ़र -ए -हयात हर तरफ़
यक़ीनन शख़्स यहाँ पर कहीं कभी कोई ठहरा नहीं मिलता
हर -सू कू-ब-कू रेत ही रेत उड़ती हुई मिलती है मग़र बशर
खोए हुए हैं सदियों से जिसमें वोह कहीं सहरा नहीं मिलता
डॉ.एन.आर. कस्वाँ #बशर
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