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खोए हुए हैं सदियों से जिसमें वो सहरा नहीं मिलता

Nathuram KaswanNathuram Kaswan April 17, 2023
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तस्वीर बनाना चहता हूँ अपनी रंग कोई गहरा नहीं मिलता

सूरतें मिलती हैं बहुत ख़ुद के लिए कोई चेहरा नहीं मिलता


किसे मालूम कौन उड़ा लेगया चमन से रंग ओ बहार तमाम 

उजड़े हुए दयार पर कहीं किसी का कोई पहरा नहीं मिलता


मुसलसल जारी है गैर -मुकम्मल सफ़र -ए -हयात हर तरफ़

यक़ीनन शख़्स यहाँ पर कहीं कभी कोई ठहरा नहीं मिलता


हर -सू कू-ब-कू रेत ही रेत उड़ती हुई मिलती है मग़र बशर 

खोए हुए हैं सदियों से जिसमें वोह कहीं सहरा नहीं मिलता


डॉ.एन.आर. कस्वाँ #बशर

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