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सोचो जरा कितनी लम्बी रही होगी उस की रहगुज़र
सदियोंका करके लंबा सफ़र यहाँतक पहुँची है गज़ल
सुख़न की खिदमत में आते-जाते रहे बहोत सुख़नवर
गज़ल को न मिला हमसफ़र हुआ ना खुदा का फ़ज़ल
यूं तो है वक़्त मुकर्रर ह
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