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सोचो जरा कितनी लम्बी रही होगी उस की रहगुज़र
सदियोंका करके लंबा सफ़र यहाँतक पहुँची है गज़ल
सुख़न की खिदमत में आते-जाते रहे बहोत सुख़नवर
गज़ल को न मिला हमसफ़र हुआ ना खुदा का फ़ज़ल
यूं तो है वक़्त मुकर्रर हर शय का दुनिया-ए -फ़ानी में
बार-बार लिए अजल ने इम्तिहाँ मग़र जिंदा है गज़ल
मुअद्दस मुकफ़्फ़ा मुसल्सल गैर - मुसल्सल है गज़ल
शेरो-सुख़न की जाँ है कुछ अलग है चुनिंदा है गज़ल
डॉ.एन.आर.कस्वाँ #बशर
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