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मुलाक़ात 



कहाँ देखते थे किसीको, देखने की वो शुरुआत याद हैं....

ठहरे से लम्हों में उनसे हुई, पहली वो मुलाक़ात याद हैं....


थोड़ी तन पे थोड़ी मन पे, गिरने लगी थी प्यार की बूंदें....

आसमान से हो रही हल्की-हल्की सी वो बरसात याद हैं....


ज़िन्दगी के ये सफ़र में, कब से अकेले चल रहे थे हम.....

संग चलने की उसने आँखों से जो कहीं वो बात याद हैं....


दूर तक फैले उन अंधेरों में, सुनसान लग रहीं थीं राहें.....

मुहब्बत से जीवन को रौशन करने वाली वो रात याद हैं....


कहाँ सोचा था, कोई अनजाना लाएगा जीवन में बहार...

नज़रों से नज़रों को मिली खुशियों की वो सौग़ात याद हैं....


कहाँ देखते थे किसीको, देखने की वो शुरुआत याद हैं....

ठहरे से लम्हों में उनसे हुई, पहली वो मुलाक़ात याद हैं....



- नरेश कुशवाहा

 

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