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ख़्वाब 


तुमसे मिलने का मैं ख़्वाब देखता हूँ...

रोज़ हुस्न तेरा ये लाजवाब देखता हूँ...


सुकून से बनाया होगा फ़रिश्तोंने तुझे....

कोशिश ये उनकी कामयाब देखता हूँ....


तेरी ये आँखों में समाया है नशा सारा....

इनसे बहती हुई कोई शराब देखता हूँ....


बस तेरा ही चेहरा आता है याद मुझे....

बाग में जो खिलता गुलाब देखता हूँ....


कँवल की पंखुरी से नाज़ुक होंठ तेरे....

कुछ बोलने को इन्हें बेताब देखता हूँ....


ख़ुश हो जाते हैं दिल के अरमान सारे....

चेहरे पे तेरे हया का नक़ाब देखता हूँ....


मन करता है तारीफ़ में लिख दूं ग़ज़ल....

जब तेरा ये निखरता शबाब देखता हूँ....


- नरेश कुशवाहा

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