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दोस्त मेरे......
ज़िन्दगी जीने का जुदा जज़्बा जगाया दोस्त मेरे......
तूने हंसकर मुझको यूं गले से लगाया दोस्त मेरे......
जीवन में था न जाने कबसे पतझड़ का मौसम.......
यारी ने इसे महकता गुलशन बनाया दोस्त मेरे.......
रूठीं आशाओं से सूना पड़ा था मन का आंगन.......
भरके रंग नये उम्मीदों के इसे सजाया दोस्त मेरे.......
खोया हुआ सा था उजाला कहीं अंधेरी राहों में......
दोस्ती ने त
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