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ग़ज़ल
122 222 122 22 मीटर
किसी से रिश्ता है तो पुराना मेरा,
पता वरना था किसको ठिकाना मेरा,,
खुली आंखों से है शिकायत इतनी,
हुआ कब है सपना सुहाना मेरा,,
रहा है मुझको याद तो बस इतना,
उसे चुपके से फिर सताना मेरा,,
मिली नज़रे तो याद आया उसको,
गले मिलकर उसको हसाना मेरा,,
नहीं दिल पर पत्थर रखे बैठे हम,
बचा ना अब दिल का खज़ाना मेरा,,
सभी तो करते बेवफाई पर क्यों,
चला क्यों ना कोई बहाना मेरा,,
मुझे लगता था सब सहीं है पंडित,
बना बैठा दुश्मन जमाना मेरा,,
पंडित नरेन्द्र द्विवेदी
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