ज़िंदगी's image
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जेठ के सूरज तले ठहरी है ज़िंदगी

सुबह न शाम बस दुपहरी है ज़िंदगी


बाज़ के पंजों तले टुकर टुकर ताकती

असहाय बया की तरह सहमी डरी है ज़िंदगी


मेरे लिए तो अब काजल की कोठरी है ये

उनक

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