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जेठ के सूरज तले ठहरी है ज़िंदगी
सुबह न शाम बस दुपहरी है ज़िंदगी
बाज़ के पंजों तले टुकर टुकर ताकती
असहाय बया की तरह सहमी डरी है ज़िंदगी
मेरे लिए तो अब काजल की कोठरी है ये
उनक
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जेठ के सूरज तले ठहरी है ज़िंदगी
सुबह न शाम बस दुपहरी है ज़िंदगी
बाज़ के पंजों तले टुकर टुकर ताकती
असहाय बया की तरह सहमी डरी है ज़िंदगी
मेरे लिए तो अब काजल की कोठरी है ये
उनक
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