
अखबार के कोने में एक खबर
एक औरत की हत्या गला रेत कर
पढ़ी सबने सरसरी तौर पर, फिर
नजर हटा ली किसी और खबर को देख कर ।
मगर मैं ठिठक कर रह गया
मैं सोचने लगा ,वह सिर्फ औरत नहीं थी
मां थी एक छोटे से बच्चे की
जो हाथ पकड़ कर उसका
समझता था खुद को शहंशाह
जिस के रोने से मचल जाती थी
सारी कायनात उस मां की
वह सिर्फ एक औरत नहीं थी।
वो किसी के सपनों की परी थी
थका हारा वह जब लौटता
तो उसकी राह तकती थी
उसका सारा संसार थी वह
अब वह नहीं तो कुछ भी नहीं
वो सिर्फ एक औरत नहीं थी ।
बेटी थी किसी की जिसको
भरे गले से किया था विदा
बरसों खिलाकर गोद में अपनी
ताजा हैं किलकारियां मन में अभी तक
वो सिर्फ एक औरत नहीं थी।
कहां है अखबार में यह सब
कि उजड़ी कितनों की दुनिया
कितने वजूद हो गए फना
कितने लोगों से बंधी थी डोर उसकी
वो सिर्फ एक औरत नहीं थी।
वो सिर्फ एक औरत नहीं थी।।
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