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सोचता हूं शायद तू धरा है,
जिस से प्रस्फुटित मेरी खुशियां हुई ।
या फिर कहीं तू आकाश तो नहीं,
रहमतों की बारिशें जिस से हुई।
नहीं, तू समंदर है शायद,
खुशियों की सीपियां उर में लिए।
या कि तू पवन बसंती तो नहीं,
जेठ से जीवन को शीतल करती हुई।
अच्छा ,तो तू पूरी कायनात होगी मेरी,
अस्तित्व मेरा सार्थक करती हुई।
मेरी हर कल्पना से भी बड़ा कद है तेरा
तू मेरे साथ है, ये अहोभाग्य है मेरा।।
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