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सोचता हूं शायद तू धरा है,
जिस से प्रस्फुटित मेरी खुशियां हुई ।
या फिर कहीं तू आकाश तो नहीं,
रहमतों की बारिशें जिस से हुई।
नहीं, तू समंदर है शायद,
खुशियों की सीपियां उर में लिए।
या कि तू पवन बसंती तो नहीं,
जेठ से जीवन को शी
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