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बड़ी तेज रफ्तार तेरी हो गई थी ।
तुझे छोटा सा कांटा चुभाना पड़ा।।
तू ख़ुद को खुदा समझने लगा था।
असल कौन है, ये बताना पड़ा ।।
तू अपनों से भी दूर होने लगा था ।
इस तरह उनके पास लाना पड़ा ।।
कुदरत को इतना छलनी किया तूने ।
थाम कर तुझको ,मरहम लगाना पड़ा।।
एक हबाब सी नाज़ुक है ये कायनात ।
आदम जात को मुझे ये समझाना पड़ा।।
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