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लेकर तिरंगा हाथ में
पहनकर कुर्ता खादी
चलो निकल पड़ते हैं लेने
एक नई आज़ादी ।
आज़ादी नफ़रत के तीरों से
गाल बजाते वीरों से
और निकम्मे नेताओं की
छपी हुई तस्वीरों से ।
मुझे चाहिए आज़ादी
बेमतलब कोरे नारों से
उन्माद धर्म का फैलाते
स्वयंभू -देशभक्त गद्दारों से ।
बेमन से कही गई
उन सब मन की बातों से
छल बल से सत्ता पाने की
राजनीति की घातों से ।
आज़ादी अधिकार हमारा
याचना किसी से क्योंकर हो
रणभेरी लेकर हम निकलें
ढिंढोरा इसका नगर नगर हो ।
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