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तमाम जिस्म पर उम्र का असर है,
सिर्फ मेरा दिल इससे बेखबर है।
वो कभी बचपन कभी जवानी में रहता है
बढ़ती उम्र को कर नज़र अंदाज,
रेत में ,सूखते दरिया सा बहता है।
बुझती आंखों को चमका देता है देखकर तितलियां।
भरता है सर्द आहें जब गिरती हैं कहीं बिजलियाँ।
मुझ से हर वक्त बगावत पर आमादा रहता है।
मुझे समझाने को जाने क्या क्या कहता है।
समझाता है, इश्क़ में उम्र का ज़िक्र क्यों करें।
दिल आ जाए किसी पर तो फिक्र क्यों करें।
ऐ दिल बता ,तू और कितनों पर आएगा ?
ढलती उम्र में क्या नया कोई गुल
खिलाएगा?
मेरी इस दीवानगी पर सब की नज़र है।
सिर्फ मेरा दिल इस से बेखबर है।
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