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तेरी ये बदगुमानी है जो मेरे लिए
मुझसे फिर एक ख़ता हो गई क्या
लिखने में जिसे दिन बीता मेरा
वो पैग़ाम पढ़े बिना सो गई क्या
मेरी बेताबी, इश्क़ की जमीं पर
कोई ज़हर का बीज बो गई क्या
जिसे तू रोज़ सोते वक्त पढ़ती थी
मेरी वो चिट्ठी तुझसे खो गई क्या
रेत पर लिखे मुहब्बत के चंद हर्फ
पहली ही वो बारिश धो गई क्या
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