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पाषाण हृदय से लगाया
अच्छा नहीं किया
धूल को सर पर चढ़ाया
अच्छा नहीं किया
मेरे जज़्बात वो
समझे न समझे
राज़ ए दिल उसको बताया
अच्छा नहीं किया
मैं ज़मी पर आने को
इस क़दर बेताब था
टूटे तारे सा खुद को गिराया
अच्छा नहीं किया
फूल पर मचली थी
कुछ ऐसी तबीयत
ख़ुद को ही कांटा चुभाया
अच्छा नहीं किया।
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