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प्रेम इतना ही सच्चा और निस्वार्थ करना तुम उस यथार्थ से,
जितना कर रहे हो इस सम्पूर्ण भ्रांति मात्र से।
छोड़ के जा रही होगी जब वो तुम्हारी कल्पना, एक आखिरी आलिंगन जरुर माँग लेना उससे।
उढ़ेल देना उसे उसमे में ही सारा का सारा, निकाल देना उसका हर एक कतरा स्वयं से
और रोक लेना तुम फिर उसे एक नासूर बनने से।
"नम्रता ऊषा शुक्ला"
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