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क्या भूलूं क्या याद करूं

Naman UpadhyayaNaman Upadhyaya April 23, 2022
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(July 2017)


कुछ दिनों पहले जब एक साथी ने मुझसे मेरे FSI में बीते समय का वर्णन मांगा, मेरे दिमाग में जो पहली पंक्ति आई वह थी क्या भूलूं क्या याद करूंI क्योंकि स्मृतियों या यादों कि यह खूबी रहती है की उन्हें भूलने के लिए भी याद करना पड़ता हैIऔर उसके बाद जो सबसे मुश्किल काम है वह है उन स्मृतियों को एक सूत्र में पिरोना और शब्द देना जिसकी एक छोटी सी कोशिश में करने जा रहा हूंI


सोचता हूं, क्या दिल्ली की उस भीषण गर्मी वाले दिन को भूल जाऊं जब मैं एक परीक्षा देने केंद्रीय विद्यालय गया था या याद रखूँ उस पल को जब मेरे कदम उस विद्यालय के सामने विदेश मंत्रालय का बोर्ड देखकर ठिठक गए और मन में उस गेट में जाने की इच्छा और प्रबल हो गईI

क्या उस डर को भूल जाऊं जो परीक्षा परिणाम के ठीक पूर्व होता था जब मैं अपना नाम सूची में तलाशता था या उस अकल्पनीय क्षण को याद रखूँ जब उत्तीर्ण होने के बाद मैंने अपने माता-पिता, और बहनों की आंखों में आंसू देखे थेI


कभी-कभी सोचता हूं उन पलों को भूल जाऊं जब मसूरी में दोस्तों से विदा लेते वक्त आंखें नम हो गई थी और गला रुंध गया था पर अगले ही क्षण उन्हीं दोस्तों के तोहफों से अपने FSI के कमरे को सजाने की यादों को भी हमेशा के लिए संजो कर रखना चाहता हूंI

स्मृतियों की पोटली को टटोलने पर सोचता हूं उन वक्तव्यों को भूल जाऊं जब आंखें बोझिल हो जाती थी और पलकें नायक नायिका की भांति एक दूसरे का स्पर्श करने के लिए तत्पर रहती थी पर उनको भूलने से पहले याद करता हूं वह पल जब सभी दोस्त कक्षा में एक-दूसरे से WhatsApp करते,अपने पड़ोसी को सोते देख खुद अपनी नींद भगाते थेI


यहां तक की उन पलों को भी भ

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