
Share0 Bookmarks 25 Reads1 Likes
मैं क्या हूँ,
इसी बात की तलाश में तो, आज भी भटक रहा हूँ।
बिना किसी बात के, बस यूं ही गुज़र रहा हूँ।
अरे माना कि अल्हड़पन में, अकेला हूं मगर,
महादेव का भक्त हूँ, बस यूं ही चला जा रहा हूँ।।
और अगर मैं रोऊं, तो मेरी परवाह ना करना।
बस मुंह फेरकर कहीं दूर निकल लेना।
अकेलेपन से मित्रता कुछ यूं कर बैठा हूँ।
कि एक कोने में बैठ के, बस महादेव- महादेव रटा हूँ।।
और दुनिया का क्या है, वह तो हंस कर चली जाती है।
बस तुम्हें ही पीछा, अकेले छोड़ जाती है।
और भूल गया तू,
एक तेरे कर्म ही तो हैं, जिसको लेकर तू बढ़ा था।
महादेव की उंगली पकड़कर, तू पल-पल चला था।।
और आज सब कुछ पा लिया, तो खुद को बलवान कहता है।
जिससे सब कुछ पाया, उसी को अनजान कहता है।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments