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ना मैंने विषपान किया है
नहीं बाघ से वस्त्र बनाया
विस्मित हूं प्रतिबिंब देखकर
मुझमें रुद्र कहां से आया
किंचित क्रोध ना शोभा देता
शब्द बाण ने तरकश भेदा
पर कब तक अधर्म के आगे
आंख मूंदकर रहूं मैं बैठा
व्यर्थ हुए सारे विकल्प जब
माथे पर फिर नेत्र बनाया
विस्मित हूं प्रतिबिंब देखकर
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