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अपने मस्तक पर प्रकाश का स्रोत और न जाने क्या-क्या सजाए उज्जवल आकाश, अपने बराबर किसी को न पाकर खूब इठलाता है।
मगर
अप्रत्याशित धूल कण बिन पंखों के उस तक पहुँच उसका सारा प्रकाश निगल जाते हैं।
इसलिए सफल होकर निश्चिंत न हों, चैतन्य रहें।
✍मुक्ता शर्मा त्रिपाठी
मगर
अप्रत्याशित धूल कण बिन पंखों के उस तक पहुँच उसका सारा प्रकाश निगल जाते हैं।
इसलिए सफल होकर निश्चिंत न हों, चैतन्य रहें।
✍मुक्ता शर्मा त्रिपाठी
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