शीर्षक:- वो आँखें ढूँढ रहा हूँ मैं...'s image
Poetry2 min read

शीर्षक:- वो आँखें ढूँढ रहा हूँ मैं...

Mukesh jangidMukesh jangid February 24, 2023
Share0 Bookmarks 16 Reads1 Likes
जो गैरो के दुःख-दर्द से नम हो जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं.. 
जो बड़ों से बात करते हुए झुक जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं.. 
जो दूसरों को मुसीबत में देख स्वत: बंद हो जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो अपनों को खोकर भर आती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं.. 
जो दुर्घटना होते देख स्वयमेव रूक जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो अपनों की याद में भीग जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो पिया के खत को बंद आँखों से पढ़ लेती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो आँखों ही आँखों के खेल में रम जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो दरवाजे से दूसरों के घर की टीवी में गड़ा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो सदा किताबों को पढ़ा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो रात में तारों को टकटकी लगा कर देखा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो सफ़लता को पाकर फूल की भाँति खिल जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो ऊँची उड़ान भरने को ऊपर उठ जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो जीवन के अंतिम पल तक को जिससे निहारती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं... 

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts