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जो गैरो के दुःख-दर्द से नम हो जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो बड़ों से बात करते हुए झुक जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो दूसरों को मुसीबत में देख स्वत: बंद हो जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो अपनों को खोकर भर आती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो दुर्घटना होते देख स्वयमेव रूक जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो अपनों की याद में भीग जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो पिया के खत को बंद आँखों से पढ़ लेती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो आँखों ही आँखों के खेल में रम जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो दरवाजे से दूसरों के घर की टीवी में गड़ा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो सदा किताबों को पढ़ा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो रात में तारों को टकटकी लगा कर देखा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो सफ़लता को पाकर फूल की भाँति खिल जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो ऊँची उड़ान भरने को ऊपर उठ जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो जीवन के अंतिम पल तक को जिससे निहारती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं...
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो बड़ों से बात करते हुए झुक जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो दूसरों को मुसीबत में देख स्वत: बंद हो जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो अपनों को खोकर भर आती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो दुर्घटना होते देख स्वयमेव रूक जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो अपनों की याद में भीग जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो पिया के खत को बंद आँखों से पढ़ लेती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो आँखों ही आँखों के खेल में रम जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो दरवाजे से दूसरों के घर की टीवी में गड़ा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो सदा किताबों को पढ़ा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो रात में तारों को टकटकी लगा कर देखा करती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो सफ़लता को पाकर फूल की भाँति खिल जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो ऊँची उड़ान भरने को ऊपर उठ जाती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं..
जो जीवन के अंतिम पल तक को जिससे निहारती थी
वो आँखें ढूंढ रहा हूँ मैं...
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