सबका साथ, सबका विकास's image
Poetry2 min read

सबका साथ, सबका विकास

Mukesh jangidMukesh jangid February 7, 2023
Share1 Bookmarks 46385 Reads1 Likes
मैं क्षिप्र गति से अपने कर्तव्य पथ
की ओर उन्मुख था
तो ज़रा सा मैं अग्रिम पंक्ति में था
परंतु मैं क्या देखता हूँ
खड़े पश्च पंक्ति में लोग कुछ
कह रहे थे
तो अग्र भाग में होने से
मैं सुन नहीं पाया
लगाया अंदाजा मैंने कि
तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे पीछे हैं
ऐसा कुछ कह रहे होंगे
लेकिन समय की विडंबना तो देखिये
उसने मुझे उन अनसुने शब्दों 
का भान कराया
हुआ यूँ था कि पश्च पंक्ति के
भ्रातगण मुझे अपने समकक्ष व कमतर
लाना चाह

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts