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सबका साथ, सबका विकास

Mukesh jangidMukesh jangid February 7, 2023
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मैं क्षिप्र गति से अपने कर्तव्य पथ
की ओर उन्मुख था
तो ज़रा सा मैं अग्रिम पंक्ति में था
परंतु मैं क्या देखता हूँ
खड़े पश्च पंक्ति में लोग कुछ
कह रहे थे
तो अग्र भाग में होने से
मैं सुन नहीं पाया
लगाया अंदाजा मैंने कि
तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे पीछे हैं
ऐसा कुछ कह रहे होंगे
लेकिन समय की विडंबना तो देखिये
उसने मुझे उन अनसुने शब्दों 
का भान कराया
हुआ यूँ था कि पश्च पंक्ति के
भ्रातगण मुझे अपने समकक्ष व कमतर
लाना चाहते थे
इनकी विचारोत्कृष्टता तो देखिये
तो उन्होंने मुझे समूह में पीछे की
ओर खींचा
तो मैंने सोचा, चलो साथ साथ चलेंगे
परंतु उनकी भी विवशता थी कि
वे समग्र रूप से एक से आगे नहीं 
बढ़ पा रहे थे
तो उन्हें ख्याल आया क्यों ना
उसे ही पश्च पंक्ति में लाया जाए
फ़िर मैं भी विचारों के गर्भ
में गया और सोचा, ये उनकी
विवशता थी, विडंबना थी
तो मैंने पाया कि क्यों ना 
समग्र रूप से अग्र पंक्ति की 
ओर उन्मुख हो चले.... 

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