फ़िर भी मैं अबला हूँ


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फ़िर भी मैं अबला हूँ फ़िर भी मैं अबला हूँ

Mukesh jangidMukesh jangid February 7, 2023
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मैं अभागिन सूर्य को नित जगाती
फ़िर रोज़ कि भाँति फ़र्ज को अदा करने में लग जाती
ढोर-डाँगर को खिलाती, पिलाती, नहलाती
खूंटे संग बाँधे रखती 
फ़िर भी मैं अबला हूँ

मैं ही माँ, बाऊजी का ख्याल रखती
उनकी सेवा करती
उनकी ढाल, चश्मा और लाठी बनती
उनकी आलोचना का विषय बनती, सहती
फ़िर भी मैं अबला हूँ

मैं ही वह विधवा हूँ जो
पेट और बच्चों के लालन-पालन
हेतू मज़दूरी करती, ईटें उठाती
तगारी उठाती, फावड़ा चलाती
फ़िर भी मैं अबला हूँ

मैं ही वह सती सावित्री हूँ
जिसने पतिव्रता के बल पर पति को यम से छीना
मैं ही वह नारी हूँ जिसने पति को परमेश्वर मानकर
उनके द्वारा प्रताड़ना सही
फ़िर भी मैं अबला हूँ

मैं ही खेत जोतती, हल चलाती
खाद उड़ेलती, धान रोपती
धान काटती, कट्टे भरती
उन्हें उठाती
फ़िर भी मैं अबला हूँ

मैं ही वह अभागिन 
जिससे स्वयं परमात्मा ने मुँह मोड़ लिया
चली पनिहारन बनके, लाद सुराही सर पे
भार नीर-घड़े का सहके
फ़िर भी मैं अबला हूँ

मैं ही अन्नपूर्णा, मैं ही अन्नदात्री हूँ
मैं ही भोजन बनाती
मैं ही चूल्हे का अहितकर, हानिकर 
धुआँ सहती हूँ 
फ़िर भी मैं अबला हूँ

मैं ही युधिष्ठिर का अभिशाप सहती
अपने दुःख,पीड़ा सहती, अपने अश्क को छुपाती
अगर मैं रोई तो नयनों से अश्क बहेंगे
जैसे अब्र बरसे, तो भी सहती हूँ
फ़िर भी मैं अबला हूँ

मैं ही आदि शक्ति, रणचंडी, 
चौसठ जोगनी, काली, 
नवदुर्गा हूँ मैं
मैं ही महिषासुर मर्दिनी हूँ
फ़िर भी मैं अबला हूँ

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