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मैं अभागिन सूर्य को नित जगाती
फ़िर रोज़ कि भाँति फ़र्ज को अदा करने में लग जाती
ढोर-डाँगर को खिलाती, पिलाती, नहलाती
खूंटे संग बाँधे रखती
फ़िर भी मैं अबला हूँ
मैं ही माँ, बाऊजी का ख्याल रखती
उनकी सेवा करती
उनकी ढाल, चश्मा और लाठी बनती
उनकी आलोचना का विषय बनती, सहती
फ़िर भी मैं अबला हूँ
मैं ही वह विधवा हूँ जो
पेट और बच्चों के लालन-पालन
हेतू मज़दूरी करती, ईटें उठाती
तगारी उठाती, फावड़ा चलाती
फ़िर भी मैं अबला हूँ
मैं ही वह सती सावित्री हूँ
जिसने पतिव्रता के बल पर पति को यम से छीना
मैं ही वह नारी हूँ जिसने पति को परमेश्वर मानकर
उनके द्वारा प्रताड़ना सही
फ़िर भी मैं अबला हूँ
मैं ही खेत जोतती, हल चलाती
खाद उड़ेलती, धान रोपती
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