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शुक्रवार का दिन था ।। मै झांसी शहर के सड़कों पे यूहीं बेरोजगारी में टूटा हुआ व्यक्ति की तरह महसूस कर रहा था..... ईलाइट चौराहा के पास लाइट के लगे खंभे के नीचे पानी पूरी के ठेले पे एक लड़का जो कि हमारे ही कॉलेज का था और मुझसे जूनियर (भाई ) था।।बड़े ही प्यार से अपनी साथी G.F के साथ पानी पूरी खा रहा था ।मै उसे रास्ते के उस पार से देखा ,उसके चेहरे पे इस भीड़ भाड़ शहर में किसी के देखने का डर बार बार सताए जा रहा था।एक पल के लिए तो मुझे लगा कि मुझे वहां जाना चाहिए,फिर मेरे आत्मा के अंदर एक कहानी कि रचना होने लगी ,मै सोचने लगा कि मैंने अपनी जीवन में कभी प्यार मोहब्बत जैसी चीजों को महसूस नहीं किया,पर आज मै किसी की मोहब्बत को जीने जा रहा था । मैंने कुछ ही देर पहले ATM से कुछ पैसे निकाले थे।मेरे पास खुल्ले नहीं थे,मै सामने की पुस्तक दुकान से कुछ कलम और पेज का बंडल लिया और जल्दी से दुकान वाले से कुछ खुल्ले पैसे लिए ओर जल्दी से पानी पूरी के ठेले की तरफ बढ़ा । मुझें दोनों मोहब्बत के परिंदे कहीं नजर नहीं आए।मै झट से पानी पूरी वाले के पास गया और पूछा "अंकल,अभी तुरंत दो लोग पानी पूरी खा रहे थे वो किधर गए.?? "अंकल ने मेरा हाव भाव देख के बोला मुझे नहीं पता । मैंने हाथ जोड़ कर फिर कोशिश की अंकल से आखिर में उन्होंने बता ही दिया....... मै जल्दी जलदी चौराहे को पार कर जेल चौराहा की तरफ़ जाने वाले ऑटो के पास पहुंचा मुझे दोनों नजर आ गए।ये दोनों ऑटो वाले से बात कर रहे थे पर ऑटो मै सीट कम थी शायद ।।लड़का लड़की की हाथों में हाथ डाल कर पैदल है अपनी मंजिल को बढ़ा। मुझे एहसास होने लगा कि मोहब्बत भी एक पवित्र आत्मा की तरह होती है।
जो लोगो को किसी भी हद से गुजर जाने का साहस देती है।मै भी पैदल पैदल अपनी कहानी को सजा रहा था।।मेरे अंदर उनको देख कर के कुछ पंक्तियां याद आ रही थी कि:-
"ए सनम तेरा साथ मिले तो मीलो दूर चला जाऊ,
तू मुझे अपनी ओर खीचे मै तुझे अपनी ओर खीचा जाऊ,
किसी और मंजिल की चाह नहीं मुझको ,
झांसी की गलियों में बस गुमनाम हो जाऊ..।।।।"
लगता है ना कभी कभी की प्यार करना और हो जाना दोनों में बहुत अंतर है, हम आप जो सिनेमा में देखते है वो प्यार जिसमें दिखलाया जाता है कि अमीर लड़की और गरीब लड़का कैसे इस दुनिया में संघर्ष करते है और अंत में उन्हें मार दिया जाता है वगैरह वगैरह...........
इन्हीं सब बातों को सोचते हुए हम सदर बाज़ार पहुंच चुके थे।। रास्ते में कभी किसी बात को लेकर दोनों का
जो लोगो को किसी भी हद से गुजर जाने का साहस देती है।मै भी पैदल पैदल अपनी कहानी को सजा रहा था।।मेरे अंदर उनको देख कर के कुछ पंक्तियां याद आ रही थी कि:-
"ए सनम तेरा साथ मिले तो मीलो दूर चला जाऊ,
तू मुझे अपनी ओर खीचे मै तुझे अपनी ओर खीचा जाऊ,
किसी और मंजिल की चाह नहीं मुझको ,
झांसी की गलियों में बस गुमनाम हो जाऊ..।।।।"
लगता है ना कभी कभी की प्यार करना और हो जाना दोनों में बहुत अंतर है, हम आप जो सिनेमा में देखते है वो प्यार जिसमें दिखलाया जाता है कि अमीर लड़की और गरीब लड़का कैसे इस दुनिया में संघर्ष करते है और अंत में उन्हें मार दिया जाता है वगैरह वगैरह...........
इन्हीं सब बातों को सोचते हुए हम सदर बाज़ार पहुंच चुके थे।। रास्ते में कभी किसी बात को लेकर दोनों का
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