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जो हाल अपना किसी को नही दिखाते
दिल पे लगे घाव दिल में ही दबाते
दिल में जो बात है नहीं बताते
दूर तक हम कहीं भी नहीं जाते
अक्स कुछ देर तक नहीं रुकते
बोझ ये आईने नहीं उठाते
अब नसीहत उनसे नहीं लेते
यूँ ही नही अपना दिल गँवाते
धुंआ उठा दूर का नहीं देखते
औरों की लगी आग नहीं बुझाते
आप अपने में जलते बुझते हैं
ये तमाशा कहीं नहीं दिखाते
बदले रिश्तों की दुनिया नही देखते
अपने पराये का भेद खूब समझते
पैसे की अहमियत अब ही समझते
पैसे ही आजकल रिश्ते लोग समझते
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