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ज़ुल्म ऐसा है कि देखा नहीं जाता
दर्द ऐसा ही कि कोई इलाज नहीं
टूटे हुए को और तोड़ो न तुम कहीं
ये तो किसी दुश्मन का भी अंदाज़ नहीं
वो चैन से कमाकर रोटी खाने वाले
अब उनका घर में बंद सामान नहीं
नफरत छोड़ो मुक़म्मल मुल्क जोड़ो
हम इंसान हैं सब कोई हैवान नहीं
मुहम्मद आसिफ अली (Indian Poet)
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