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नज़्म लिखू मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
चैन से गुज़र रही है ज़िन्दगी
ख़्वाब भी अच्छे पल रहे हैं
नज़्म लिखूं मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
दुनिया में कोई गम नहीं
हम भी खुशियों में ढल रहे हैं
नज़्म लिखूं मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
हाथों ने कलम भी ठीक पकड़ी है
पाँव भी अच्छे चल रहे हैं
नज़्म लिखूं मगर किस पर
चराग़ तो सभी जल रहे हैं
जवानी में दम में मौज़ूद है
और बुढ़ापे में भी ढल रहे हैं
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