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जिंदगी वैसे ही खफा चल रही थी,
अब एक नया कहर उसने ढाया है,
आमदनी का ठिकाना तो पहले ही न था,
अब भूख से मरने का वक़्त आया है,
बदहवास निकल पड़ा हूँ घर से,
अब ठौर न ही कोई ठिकाना है,
सूख गया है रक्त चलते-चलते,
अब ईश्वर बस तेरा ही सहारा है।
- मृदुल
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