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एक एक कर उड़ गए परींदे सारे
सूनी हर डाली हो गई
जबसे सूख गया वो पड़े पुराना
किसी ने उसकी कद्र ना की
कभी घंटो गुजार दिया करते थे छांव में जिसकी
अब उस पेड़ के पास को ठहरता भी नहीं
इस पतझड़ ने बता दिया हमें
की मौसम बसंत का सदा रहता नहीं
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