Share0 Bookmarks 47921 Reads1 Likes
मन उलझते तार मेरे साल बीता जा रहा
क्या कहूँ सरकार मेरे साल बीता जा रहा
शगुन की हल्दी लगाए सपन कोरे आँख में
तुम न आए द्वार मेरे साल बीता जा रहा
फूल काहे डालियों से सूखकर गिरने लगे
बोल दे गुलकार मेरे साल बीता जा रहा
इन दुखों को हर महिने हम फ़िरौती दे रहे
बाँच ले अख़बार मेरे साल
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments