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मन उलझते तार मेरे साल बीता जा रहा
क्या कहूँ सरकार मेरे साल बीता जा रहा
शगुन की हल्दी लगाए सपन कोरे आँख में
तुम न आए द्वार मेरे साल बीता जा रहा
फूल काहे डालियों से सूखकर गिरने लगे
बोल दे गुलकार मेरे साल बीता जा रहा
इन दुखों को हर महिने हम फ़िरौती दे रहे
बाँच ले अख़बार मेरे साल बीता जा रहा
उलटबांसी ले उबासी दे उदासी हाथ में
छीनकर रुजगार मेरे साल बीता जा रहा
यार मुझको तू करा दे पार अब तो ये नदी
घाट के घटवार मेरे साल बीता जा रहा
सोम-मंगल शुक्र-शनी सँग ले लिए बुध-गुरु यहाँ
ले लिए इतवार मेरे साल बीता जा रहा
:मोहन पुरी
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