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देकर के हाथ में तेरे,मैं हाथ क्या चलूं।
अच्छी नहीं डगर कोई,मैं साथ क्या चलूं।
बदला नहीं है कुछ भी,लोगों का नजरिया,
फिर से मिलेगी दुख की सौगत क्या चलूं।
चलना तो चाहता हूं तहायत साथ में मगर,
वश में नहीं ये होते मेरे हालात क्या चलूं।
इक फिक्र रहबरी की,इक मसाला अना भी है,
'आबिद' कहेंगे लोग सभी दो बात,साथ क्या चलूं।
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